इश्क
इश्क
दहलीज़ उम्र की थी , आहटें थी इश्क की ही
दिन रंग में थे डूबे , रातें थी सितारों में
छुप छुप कर किये, सारे फोन कॉल और
डर डर कर हुयी, सारी मुलाकातों में
फूल की सुगंध और, प्यार से लिखे वो नाम
रह गये बंद बस कॉपियों किताबों में
ढूँढते रहे थे खूब , मिल ना सका था पर
फ़िल्मों सा इश्क बस रह गया ख्वाबों में
यथार्थ में मिले मगर इश्क के प्रमाण वही
विदाई के वक़्त काँधे थामे जिन हाथों ने
बोझिल क्षणों में मेरे , संबल बनी रहीं जो
प्रेम को बढ़ाया उन स्नेह भरी बातों ने
कड़वी दवाइयाँ भी लेनी जो पड़ी कभी तो
इश्क मीठा किया तेरी फिक्र भरी डांटों ने
मौन में भी गूंजता है शोर अब इश्क का ही
काम होंठ वाले सब कर डाले आँखों ने।