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Chitra Chellani

Classics

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Chitra Chellani

Classics

ईश्वर

ईश्वर

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जीवन रंग मंच पर अपना किरदार निभाते निभाते 

पात्र कभी कभी यह भूल जाता है 

कि वह बस एक अभिनेता भर है 

जिसे अपने किरदार को अपने ढंग से निभाने की 

बस कुछ छूट दी है 


उस परम निर्देशक ने 

उसे अपना किरदार गढ़ने की स्वतंत्रता तो है 

मगर साथी किरदारों पर नियंत्रण नहीं 

ना ही किसी किरदार का प्रारंभ या अंत उसके हाथ है 

पात्र स्वयं को ही निर्देशक मान बैठता है


और इस नाटक में ही 

पुरस्कार कमाते रहना चाहता है 

भूल जाता है इस जीवन का असल लक्ष्य 

जो है 


बस अपने किरदार को बेहतरीन निभाना 

और छोड़ देना बाकी पूरी पटकथा 

बस उस "ईश्वर" पर।


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