डर
डर
तेरे अदम्य साहस के सम्मुख
ये डर भी थर - थर काँपेगा
साक्ष और कटाक्ष के सम्मुख
जब होगी विचलित संवेदना
फिर अन्तर्मन मे भय जागेगा
और जागेगी कूच कि उत्तेजना
परन्तु बुलन्द हौसलो से जब तू
चुनौतियों के महासमर को नापेगा,
तेरे अदम्य साहस के सम्मुख
ये डर भी थर - थर काँपेगा
मन कि मर्जी को आजाद कर
डर मत , डर से फसाद कर
अन्तरध्वद्वं से ना अवसाद कर
करना है तो शंखनाद कर
डर भी तुझसे डर जायेगा
और तेरे ही नाम का राग अलापेगा,
तेरे अदम्य साहस के सम्मुख
ये डर भी थर - थर काँपेगा
दीपक मे अगर तेल हो तो
चिरागों को बुझने का
अधिकार नहीं होता
जिनके हौसले बुलंद हो
उनके कदमों को धूजने का
अधिकार नहीं होता
अंजान सफर, अंजान पटल
तु भी अटल, भय भी अटल
मानस को मजबूत कर
ये भय , विजयश्री के तख्त पर
तेरे ही नाम को छापेगा,
तेरे अदम्य साहस के सम्मुख
ये डर भी थर - थर काँपेगा।