इश्क मे जात क्यों पुछते हो
इश्क मे जात क्यों पुछते हो
क्या लगा हाथ ये पुछो,
हालात क्यों पुछते हो...
इश्क पुछना है तो पुछो,
इश्क में जात क्यों पुछते हो...
ये दिल तुम्ही ने तोड़ा है जी,
क्या रही होगी बात क्यों पुछते हो...
हम शर्मिंदा है तुम्हारी बेशर्मी देखकर ,
सिसकने दो हमें !
ये आंसुओं की बरसात क्यों पुछते हो...
खैरात समझकर छोड़ा है न हमें, तो खैरात ही पुछो ,
"कब लाओगे बारात ?" क्यों पुछते हो...
और इस कत्ल-ए-मुहब्बत में खंजर पर लगा दाग पुछो,
ये खून से सने हुए हाथ क्यों पुछते हो...
खैर ............
ये इश्क इक इल्जाम ही है, इसकी करामात पुछो,
यूं पुरी की पुरी कायनात क्यों पुछते हो ....
