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ravindra kumawat

Romance

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ravindra kumawat

Romance

सफर -ए -इश्क

सफर -ए -इश्क

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बड़ा रदीफ काफिये की बात करता था,

वो शख़्स तो मेरे साथ बहर तक न चल पाया ....

मुझसे बिछडकर जन्नत को जा रहा था ,

अकेला तो वो शहर तक न चल पाया ....

मेरा कुसूर इतना सा है कि

मै दिल लगाकर के अपना दिमाग लगाना भूल गया

सो फिर यूंहुआ कि मेरा सफर-ए-इश्क ,

उसके जुल्फोंं कि लहर तक न चल पाया ....

खैर , रातभर रस्म-ए-वफा मे सो चुका वो शख़्स 

सुबह होते ही मुकर गया ! 

इश्क का हाथ पकडकर तो वो भी दोपहर तक न चल पाया .!


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