तुम सा कोई मिला नहीं
तुम सा कोई मिला नहीं
साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।
एक से एक हसीन जहाँ में , पर तुम सा कोई मिला नहीं ।
झील सी गहरी इन आँखों में , कविता नज़्म ग़ज़ल पलती है ।
ये जगती तो सहर जगे और , ये झुकती तो शब ढलती है ।
तुम सा कोई गुल गुलशन में, सदियों से ही खिला नहीं ।
साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।
रात में छत पे आया करो ना , चाँद मलिन हो जाता है ।
पाकर तेरा दीद चकोरा , तुझ में ही खो जाता है ।
हर गम से महफूज़ रहो तुम , तुम सा हुस्न का किला नहीं ।
साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।
वक़्त बे वक़्त ना बाहर निकलो , वक़्त अभी महफूज़ नहीं ।
हुस्न को ताड़ती लाखों आँखें , जिनकी नीयत ठीक नहीं ।
तुम जिसको भी मिल जाओगी , उससे बढ़कर सिला नहीं ।
साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।