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सतीश मापतपुरी

Romance

4  

सतीश मापतपुरी

Romance

तुम सा कोई मिला नहीं

तुम सा कोई मिला नहीं

2 mins
372


साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।

एक से एक हसीन जहाँ में , पर तुम सा कोई मिला नहीं ।


झील सी गहरी इन आँखों में , कविता नज़्म ग़ज़ल पलती है ।

ये जगती तो सहर जगे और , ये झुकती तो शब ढलती है ।

तुम सा कोई गुल गुलशन में, सदियों से ही खिला नहीं ।

साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।


रात में छत पे आया करो ना , चाँद मलिन हो जाता है ।

पाकर तेरा दीद चकोरा , तुझ में ही खो जाता है ।

हर गम से महफूज़ रहो तुम , तुम सा हुस्न का किला नहीं ।

साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।


वक़्त बे वक़्त ना बाहर निकलो , वक़्त अभी महफूज़ नहीं ।

हुस्न को ताड़ती लाखों आँखें , जिनकी नीयत ठीक नहीं ।

तुम जिसको भी मिल जाओगी , उससे बढ़कर सिला नहीं ।

साथ तेरा हो हाथ तेरा हो , जीवन से कोई ग़िला नहीं ।



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