चलो आज ख़ुद को (भाग-2)
चलो आज ख़ुद को (भाग-2)
ॐ जय श्री राधे-कृष्णा ॐ
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं
पुरानी किताबें पुनः खोलते हैं
प्रीत की जो कहानी गढ़ी थी कभी
चलो तुमको उसमें पुनः देखते हैं
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!
वो लिक्खे हुए प्रेम के हर्फ़ सारे
अक्स अब भी तुम्हारा सजाये हुए हैं
वो पलकों के साये में रातों की नींदें
सपन अब भी तुम्हारे संजोए हुए हैं
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!
वो बारिश की बूँदों में तेरा बरसना
मेरा तन मन अब भी भिगोये हुए हैं
हरी घास पे ओस के बिखरे मोती
हंसीं अब भी तुम्हारी सजाये हुए हैं
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!
वो रातों की रानी का रह-रह महकना
तेरी खुशबू अब भी समाये हुए है
तुम्हारे दिए वो गुलाबों के तोहफ़े
किताबों में अब भी संभाले हुए हैं
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!
वो साँसें तेरी मुझको जो छूती कभी थीं
वही साँसे अब भी महकती हैं मुझमें
वो धड़कन तेरी दिल में धड़की कभी थी
वही धड़कन अब भी धड़कती है मुझमें
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!
वो पाती जो तुमने लिखी प्रीत की थी
वही प्रीत मुझपर लुटाती है अब भी
वो वादे मिलन के किये थे जो तुमने
वही मुझको अब भी जियाये हुए है
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं
पुरानी किताबें पुनः खोलते हैं
प्रीत की जो कहानी गढ़ी थी कभी
चलो तुमको उसमें पुनः देखते हैं
चलो आज तुमको पुनः ढूंढते हैं!