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Gaurav Dwivedi

Romance

4.7  

Gaurav Dwivedi

Romance

टूटकर यादों के तरु से !

टूटकर यादों के तरु से !

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टूटकर यादों के तरु से 

पल्लव गिरे मन के पटल पर 

कुछ अंधेरों में जले हैं 

प्रीत के दीपक पुराने 


कुछ बने फिर स्याह बादल

गिर अलक मदहोश तन पर

कुछ चटकती धूप में भी

बर्फ की चादर समेटे


कुछ अमावस रात में

पूनम का पूरा चाँद होकर

कुछ कमल की पंखुड़ी पर

ओस की बूंदों के जैसे


कुछ लताओं से लिपटते 

हैं वही अहसास बनकर

कुछ लगे मरहम से उनपर

सोज़ जो ज़ख्मों की थी


कुछ बने उनका सुकूँ 

जो धारियां अश्क़ों की थीं

कुछ किताबों में मिले.. जो

प्रेम की पाती से थे


कुछ लहकते कुछ महकते

ले गए उन उपवनों में

जो कभी आबाद थे

यादों का तरु उगने से पहले


टूटकर यादों के तरु से 

पल्लव गिरे मन के पटल पर !


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