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Gaurav Dwivedi

Others

4.7  

Gaurav Dwivedi

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मैं शब्द-शब्द तुम छन्द-छन्द -3

मैं शब्द-शब्द तुम छन्द-छन्द -3

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मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग


मैं घायल हुआ हृदय से तो

तुम उन घावों पर मरहम हो

मैं यदि व्यथित हुआ जो कभी

तुम सुंकूँ भरा तब आँचल हो

मैं जिन रातों में ना सोया

तुम उनमें मेरी लोरी हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग!


मैं झुलसी गर्मी का मौसम

तुम शीत लहर हो गर्मी में

मैं ठिठुरी सहमी सी सर्दी 

तुम धूम गुनगुनी सर्दी में

मैं झड़ता मौसम पतझड़ का

तुम इस पतझड़ का हो बसंत

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग!


मैं हूँ शायर आवारा सा

तुम शायरी हो मेरे दिल की

मैं शेर-शेर जो लिखता हूँ

तुम ग़ज़ल मुकम्मल होती हो

मैं मुक्तक एक सुनाता हूँ

तुम पूर्ण गीत बन जाती हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

ैं प्रेमगीत तुम राग-राग!


मैं हूं इक कोरा सा कागज

तुम तो पक्की सी स्याही हो

मैं टूटी-फूटी सी कड़ियां

तुम ही संपूर्ण इबारत हो

मैं हूँ छोटा सा इक प्रसंग

तुम उसका पूर्ण कथानक हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग!


मैं हूं सूरज का यदि प्रकाश

तुम उस प्रकाश की आभा हो

मैं हूं यदि इंद्रधनुष जैसा

तुम इंद्रधनुष के सब रंग हो

मैं हूँ यदि बादल के जैसा

तुम नील गगन सी विस्तृत हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग!


मैं जब-जब हूँ मन्त्रों जैसा 

तुम तब-तब मन्त्रों का जप हो

मैं हूँ यदि पूजा का तप तो 

तुम मेरी पूर्ण तपस्या हो

मैं हूँ यदि भजनों के जैसा

तुम उनकी मुखर ध्वनि सी हो

मैं शब्द-शब्द तुम छंद-छंद

मैं प्रेमगीत तुम राग-राग!


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