जिसने खुद को मिटाया
जिसने खुद को मिटाया
जिसने खुद को मिटाया उसे ही खुदा मिलता है,
फिर कैसी फिकर ? पतझड़ में भी फूल खिलता है।
फिर चलो या बैठे रहो कोई फर्क नहीं पड़ता है,
रास्ता खुद ब खुद मन्ज़िल की ओर चलता है।
इश्क़की आग में खुद को एकबार जलाकर देखो,
फिर खुदा भी तुम्हारे लिए सजता, सँवरता है।
मत सोचो की उसकी दिलचश्पी कोई नहीं है,
सिर्फ&
nbsp;तुम ही नहीं वो भी तुम्हे खोजता है।
अहंकार छोड़ के हृदयका सिंहासन खाली करो,
फिर देखो कैसे वो बेवजह हर पल बरसता है।
ऐसा नहीं की तुम ही उसके लिए तड़पते हो,
एक कदम तुम उठाओ वो सो कदम बढ़ता है
इश्क़ की दीवानगी हद से गुजर जाये एकबार तो,
प्रीतम भी साथ तेरे पागल हो के नाचता है।