कभी ऊँच तो कभी नीच बहती गंगा पावन है। कभी ऊँच तो कभी नीच बहती गंगा पावन है।
खुश रहती हूँ और खुश रखती हूँ मैं खुशी हूँ। खुश रहती हूँ और खुश रखती हूँ मैं खुशी हूँ।
मन, मस्तिष्क और शरीर को समर्पित कर देती है एक दूजे पर मन, मस्तिष्क और शरीर को समर्पित कर देती है एक दूजे पर
काव्य में संस्कृति संस्कृति से शक्ति सत्य को संवारती। काव्य में संस्कृति संस्कृति से शक्ति सत्य को संवारती।
यह कैसा व्यर्थ समागम है । जहां मेधा मारी जाती है।। यह कैसा व्यर्थ समागम है । जहां मेधा मारी जाती है।।
फैली हरियाली अनंत। लो आ गया बसंत। है नहीं अब सुकून का अंत। पतझड़ के बाद बसंत। फैली हरियाली अनंत। लो आ गया बसंत। है नहीं अब सुकून का अंत। पतझड़ के बाद बसंत।