मैं एक बेटी
मैं एक बेटी
देख मेरी किस्मत,
अपनी मां की नजर में ही नहीं उठ पाई मैं,
मेरा कसूर बस इतना कि लड़का नहीं,
लड़की बनकर आई मैं,
जब-जब जिस किसी ने चाहा
बस यूं ही मुझे फटकार दिया,
अपना काम करवाया फिर
सबने मुझे धिक्कार दिया ,
ऐसे मे गर आवाज उठाई मैनें,
अकड़ू , अहंकार भरी कहलाई मैं।
मै किस रिश्ते पर मान करूं क्यूँ
बेटी, बहू, बहन और पत्नी बन कर आई मैं।
सुन ले मेरे भगवान देती हूं दुहाई मै,
मुझे नहीं है जीना, इस जीने से बाज आई मैं,
देख मेरी किस्मत
अपनी मां की नजर में ही नहीं उठ पाई मै।