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Jassal Amarjit

Abstract

4.5  

Jassal Amarjit

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बीता लम्हा

बीता लम्हा

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393


मैं वो हर पल भूल गया,

जिस पल मैं रोया करता था, 

धिक्कार है, बीते लम्हे को 

मैं हर पल कोसा करता था, 

मुझे क्या मिला इस जीवन से,

समाज में सम्मान मिला, 

शिकायतें और भी हैं मुझको, 

मैं जहाँ रुका सत्कार मिला, 

एक होड़ थी ऊपर उठने की, 

मैं हर दिन सोचा करता था, 

धिक्कार है, बीते लम्हे को 

मैं हर पल कोसा करता था,

मुझे फूल मिले और मालाएँं,

और अनेकों ही उपहार मिले 

मैं प्रतियोगी, कभी प्रतिभागी,

कभी झोली में प्रतिभार गिरे,

फिर भी जाने क्या कमीं को मैं, 

हर दिन खोजा करता था,

धिक्कार है, बीते लम्हे को 

मैं हर पल कोसा करता था,

मैं धन्य हुआ, पत्नी पा कर,

मेरे जीवन का आधार बनी,

मैं ऊब जाऊ, किसी मुुुुुद्दे पर,

वो सवालो का जवाब बनी, 

मुझे याद नहीं कभी बदले में , 

मेरी पत्नी ने कोई बात कही, 

हर बात को समझा है इतना 

मेरी गलती सौ सौ बार सही, 

मेरे आँसू का हर इक कतरा, 

येे बोझा ढोया करता था,

धिक्कार है, बीते लम्हे को 

मैं हर पल कोसा करता था!


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