रंगो भरी होली !
रंगो भरी होली !


रंगों के मेल मिलाप में,
न मिले तो उसके विलाप में,
दो घूँट दर्द मिला दो इस गुलाल में,
दिखते हैं सारे मंजर इस कोलाहल में।
पानी का रंग बदलते हुए देखा,
न जाने किसने हमपे हरा रंग है फेका,
लाल और पीले रंग के बीच कैसा है धोखा,
दोस्ती के रंग के आगे दिल का रंग पड़ गया फ़ीका।
जलन भरे आँखों में कैसी चढ़ी है मस्ती,
रंग उतारने में हमारी हालत हुई खस्ती,
फिर भी चढ़ चुके है मौज माहौल की कस्ती,
इस रंग में कहाँ अछूता रहा किसी अमीर या गरीब की बस्ती।
गुरुर और कड़वाहट के कालेपन हुए दूर,
बड़े और छोटों के आगे हुए हम मजबूर,
दोस्तों रंगो के इस पर्व को जी लो भरपूर,
बुरा न मानो होली है ये तो है दुनिया का दस्तूर।