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Hardik Mahajan Hardik

Abstract

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Hardik Mahajan Hardik

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अनोखा प्रेम

अनोखा प्रेम

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अनोखा प्रेम का बंधन है, संयोग है एहसास का।

जगाता भाव वो दिल में, राधा कृष्ण के प्रेम का।


बिन बाँधे जो बंध आए, प्रीत प्रेम की माला से,

दर्द बेदर्दी सा बेफ़िक्र सहता, प्रेम के प्रयास का।


लक्ष्य संयोग का प्रेम है, भ्रम होगा ये इंसान का

प्यार प्रियतम की प्रेम से, ये भूल है इंसान की


बन्धन में बंध जाना प्रेम नहीं प्रेम दो भावों का।

कुछ मिला कुछ बिछड़ा है संघर्ष ये इंसान का।


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