STORYMIRROR

Dinesh Dubey

Abstract

4  

Dinesh Dubey

Abstract

अंधेरे में साया

अंधेरे में साया

1 min
837

अंधेरे में एक साया

देख दिल घबराया 

सोच मन पगलाया 


ये कैसी है माया जो 

दिख रहा अंधेरे में साया,

कही किसी पाप ने तो 

फिर अपना सर है उठाया 


इंशा को उसकी याद दिलाने 

तेरी करनी तेरे ही सामने है 

तु करता चल पाप 

हम छोड़ेंगे ना तेरा साथ

हर इंशा का कुकर्म साथ 


यदि सुधार जाए हम तो 

अंधेरे के साए हो जायेंगे कम 

ना फिर डर होगा किसी बात का 

और न ही दिखेगा साया 

अंधेरे रात का।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract