अंधेरे में साया
अंधेरे में साया
अंधेरे में एक साया
देख दिल घबराया
सोच मन पगलाया
ये कैसी है माया जो
दिख रहा अंधेरे में साया,
कही किसी पाप ने तो
फिर अपना सर है उठाया
इंशा को उसकी याद दिलाने
तेरी करनी तेरे ही सामने है
तु करता चल पाप
हम छोड़ेंगे ना तेरा साथ
हर इंशा का कुकर्म साथ
यदि सुधार जाए हम तो
अंधेरे के साए हो जायेंगे कम
ना फिर डर होगा किसी बात का
और न ही दिखेगा साया
अंधेरे रात का।