औरत
औरत
औरत महज़ इक शब्द नहीं
सृष्टि का आधार है
संस्कृति को समेटे हुए
बिखेरती खुशियां अपार है
बेटी है, पत्नी है,मां है,कभी भाभी है
हर रिश्ते को निभाने की कला उसने जानी है
फिर क्यों अब भी अस्मिता कुचली जाती है
महज़ अब भी दहेज़ के तराजू में तोली जाती है
औरत को जहां सम्मान मिलता है
वो देश सदा उन्नति के पथ पर बढ़ता है।
