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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Inspirational

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Abstract Inspirational

उम्मीद

उम्मीद

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उम्मीदों के पंख लगाकर और ऊंचा उड़ जाऊंगा 

देखना, एक न एक दिन 

मैं अवश्य मंजिल पाऊंगा 


दुख क्या राह रोकेगा मेरी 

हिम्मत की लाठी रखता हूँ 

गमों के भीषण भंवर में भी 

साहस की कश्ती खेता हूँ 


परिश्रम के पहियों पे चल के 

सपनों के महल तक जाना है

बुद्धि विवेक के दांव पेंच से 

असंभव भी संभव करना है 


आत्मबल की शक्ति के संग 

विश्वास डबल हो जाता है 

सफलता सुंदरी को पाने को 

मन मचल मचल सा जाता है 


धन दौलत का क्या है "हरि" 

आज है कल किसने देखा 

जिसके पास हो उम्मीद रतन 

खिले उसी की भाग्य रेखा 



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