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Abhishek Singh

Abstract Romance Tragedy

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Abhishek Singh

Abstract Romance Tragedy

मैं किधर जाऊँगा

मैं किधर जाऊँगा

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पिंजरे तोड़ के आखिर मैं किधर जाऊँगा 

एक दिन चूम के ज़जीर को मर जाऊँगा 


अब इज़ाज़त दे यार सफर लंबा हैं 

यूं ख़फ़ा होगा तो रास्ते में बिखर जाऊँगा 


वक़्त इतना ना लगा मुझे विदा करने में 

और ठहरा तो दिल से भी उतर जाऊँगा 


उस की बाहो में फ़ना होने की ख्वाहिश तो हैं 

सामने उस के मैं बातों से मुकर जाऊँगा 


यूँ घड़ी तकता हूँ उम्मीद से मैं जिस तरह

एक दिन वक़्त के साथ ही गुज़र जाऊँगा 


   


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