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Abhishek Singh

Abstract Tragedy

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Abhishek Singh

Abstract Tragedy

हिज्र की रात

हिज्र की रात

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हिज्र की ये रात है मगर मैं रो नहीं रहा

हर तरफ से मात हैं मगर मैं रो नहीं रहा


क्या सितम हैं की अब मलाल भी नहीं जुदाई का

मौत की ज़कात हैं मगर मैं रो नहीं रहा


यूँ समझ की जिस्म हैं बेगार रूह की अभी

क़ैद मे हयात हैं मगर मैं रो नहीं रहा


हैफ बेबसी तो देखिये कि कहना पड़ रहा

खुदखुशी की बात हैं मगर मैं रो नहीं रहा


वो मेरी नहीं हैं ये जान कर भी मौन हूँ

पहली वारदात हैं मगर मैं रो नहीं रहा।


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