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Abhishek Singh

Abstract Tragedy

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Abhishek Singh

Abstract Tragedy

आख़िरी सोच

आख़िरी सोच

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हर साँस में अब मौत का इक वादा रह गया,
ज़िंदा था, मगर दिल से बस साया रह गया।

चेहरे पे उजाला था, अंदर अंधेरा था,
हँसता रहा, पर मौत का रस्ता रह गया।

सब पूछते रहे हाल, मैं खामोश रहा,
कहने को था इक आख़िरी ख़त, पर अधूरा रह गया।

नींद में जो टूटा वो ख़्वाब नहीं था,
वो आख़िरी सोच थी  बस सपना रह गया।

हर बात पे मरहम लगे, ज़ख़्म फिर भी गहरे थे,
हर सिलवट में इक सिसकी दबा रह गया।

ठीक हूँ कहता गया, टूटता गया अंदर से,
हिम्मत थी पर कब तलक  अब दम सा रह गया।

कदम दर कदम जो साथ थे, ग़ायब हो गए,
अब सन्नाटे के साथ ही रिश्ता रह गया।

अब अभिषेक को ढूँढो कहाँ जाएगा वो
जो रोज़ जीने से हार के बस नाम सा रह गया।


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