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Abhishek Singh

Abstract Tragedy

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Abhishek Singh

Abstract Tragedy

धुआँ जैसे सिगरेट

धुआँ जैसे सिगरेट

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इक राज़ सा हर लम्हा है जल जैसे सिगरेट
तेरा इश्क़ भी छूटा है कल जैसे सिगरेट


सुलगते रहे हम भी तेरी बातों में हर दम
धीरे-धीरे हुए ख़ाक हल जैसे सिगरेट


हर शाम तिरे नाम का धुआँ लेता हूँ
टूटता हूँ मैं ख़ुद में अजल जैसे सिगरेट


लत है मुझे तुझसे बिछड़ जाने की अब
लगता है तू आदत बदल जैसे सिगरेट


जो बात अधूरी थी वो अब तक है अधूरी
रह गई है दिल में फँसी छल जैसे सिगरेट


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