आखिरी सास तक
आखिरी सास तक
दिल भर गया तो फिर क्या बचा है
पल भर की बातों में अब क्या रखा है
समाज में कहाँ बची थी हमारी कहानी
नगर से निकले तो घर कौन सा खुला है
बर्बाद खंडर देख के अफ़सोस करने वालो
मेरे कमरे मे आओ देखो वो कोनसा सजा है
हम तो दिल निकाल के रख देने वालो मे से है यारों
वो सेहलता से कह देती की ये कौन अजनबी खड़ा है
मै जो ये शेर कह रहा हूँ ज़िंदा स्वरुप मे
वो देखिये उधर कोने मे मेरा शव पड़ा है
वो देखिये अभिषेक को वो कितनी शांति से लेटा है
कोई नहीं जनता की वो अपनी आखिरी सास तक लड़ा है
