ग़ज़ल
ग़ज़ल
लिखे होंगे आज भी चंद अल्फ़ाज़ मेरे लिए।
आज भी याद में मिरी,कोई डूबा कर रोया होगा।।
बनाई होगी चाय जब,आज भी अपने लिए।
चीनी को डालते वक़्त,वो थोड़ा तो छटपटाया होगा।।
मिरी तस्वीर पे जब भी गई होगी नज़र।
निग़ाहों में वो मिरी,पल भर के लिए तो उलझा होगा।।
जब कभी हंसी का ठहाका राह चलते सुनता होगा।
एक पल रुक कर वही याद में वो डूबा तो होगा।।
चमकते चांद को जब आसमान पे देखा कर।
अपनी तकदीर पे लाज़िम वो रोया तो होगा।।
पलटते पन्नो के बीच अचानक सूखा फूल देख।
रात भर कांटे की चुभन से चुपचाप वो तड़पा तो होगा।।

