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Madhu Vashishta

Romance Tragedy

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Madhu Vashishta

Romance Tragedy

दिल के ज़ख्म

दिल के ज़ख्म

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कोई जख्म दिल का दिखाते भी कैसे? 

भला लौट कर तुम्हारे पास आते भी कैसे? 


ना माना था कहना जो की थी मनमानी, 

उसकी भला सजा हम पाते ना कैसे? 


माता-पिता ने बहुत समझाया था। 

तब तो कुछ समझ ही ना आया था। 

मन और दिमाग में तो अक्स उसका ही छाया था।


घर से निकल कर हमने माता-पिता को बहुत रुलाया था।

अब उस ही घर में लौट कर जाते भी कैसे? 


दुखों की अब इन्तेहां हो गई है।

प्यार की हकीकत बयां हो गई है। 

दरिंदगी के किस्से किसी को सुनाते भी कैसे। 


खतावर थे खता छुपाते भी कैसे। 

इस जिंदगी को छोड़ हम चाहते थे जाना। 

तभी लगा मालूम 

कि नन्हे से जीवन ने है आना।


अभी यह जीवन छोड़कर हम जाते भी कैसे? 

होशो हवास था खुद का संभाला।

माता-पिता के घर की ओर कदम बड़ा डाला।

मुश्किलें तो आई थी पर वह अपनाते ना कैसे? 


अपने मन की ममता को समझाते वह कैसे? 

आज जीवन फिर ढर्रे पर चल पड़ा है। 

मगर दोस्तों मेरी तुमसे इल्तज़ा है।

माता-पिता केवल एक ही है इस दुनिया में, 

उसके बाद नहीं मिलते कोई भी फिर उन जैसे।


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