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Praveen Gola

Tragedy

4  

Praveen Gola

Tragedy

टूटे ख्वाब

टूटे ख्वाब

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हर टूटे ख्वाब को समेटा मैने ,
ख्वाब देखने के ख्याल से ही ,
सिहरती हूँ अब मैं |
बहुत तकलीफ होती है ,
जब ख्वाब बिखरते हैं ,
उन्हे कितना पीछे धकेला मैने |

ख्वाईशें कितनी थी कभी मेरी ,
उन ख्वाईशों के ख्याल से ही ,
बिखरती हूँ अब मैं |
रोज़ तिल तिल के मरती गई ,
ये दिल ~ए ~ हसरतें ,
उनमे कितना दर्द था देखा मैने |

छूना चाहती थी खुले नभ को ,
रोशनी में जाने से अकेले भी ,
डरती हूँ अब मैं |
बंद कमरे की चारदीवारी ,
जब साँसों को भगाती ,
कागज पर शब्दों को लिखा मैने |

एक कठपुतली सी बनकर उसकी ,
खुद के वजूद को पाने के लिए भी ,
तड़पती हूँ अब मैं |
ख्वाबों का काम ही बिखरना था ,
तभी हर ख्वाब के अधूरे ख को ,
अब इस उम्र में समझा मैने ||






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