अभिशाप
अभिशाप
असमय कुदरत ने दे डाला
रधिया को अभिशाप
आश्रय देता नही जगत, पर
वह निश्छल निष्पाप ।
बचपन में वह हुई सुहागन
माँग पड़ा सिन्दूर
छोड़ चली अम्मा बाबू को
नैहर से वह दूर
सिसक सिसक कर वह डोली में
करती गई विलाप ।
स्वप्न संजोये वह सतरंगी
पहुंची जब ससुराल
आ पड़ा दुख उसके ऊपर
मुंह बाये विकराल
जीवन साथी छूट गया जब
हुआ उसे संताप ।
विधवा उसको किया भाग्य ने
मिले कहाँ से प्यार
निष्कासित कर दिया ससुर ने
बहे अश्रु की धार
बिना दोष वह सजा भोगती
किया ने जिसने पाप ।
अब उसको हर नजर घूरती
ताने देते लोग
व्यथित हुआ जब मन उसका तब
अपनाया फिर जोग
किन्तु जानवर कहाँ नही हैं
तनिक सोचिए आप