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Chandragat bharti

Tragedy

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Chandragat bharti

Tragedy

अभिशाप

अभिशाप

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असमय कुदरत ने दे डाला

रधिया को अभिशाप

आश्रय देता नही जगत, पर

वह निश्छल निष्पाप ।


बचपन में वह हुई सुहागन

माँग पड़ा सिन्दूर

छोड़ चली अम्मा बाबू को

नैहर से वह दूर

सिसक सिसक कर वह डोली में

करती गई विलाप ।


स्वप्न संजोये वह सतरंगी

पहुंची जब ससुराल

आ पड़ा दुख उसके ऊपर

मुंह बाये विकराल 

जीवन साथी छूट गया जब

हुआ उसे संताप ।


विधवा उसको किया भाग्य ने

मिले कहाँ से प्यार 

निष्कासित कर दिया ससुर ने

बहे अश्रु की धार

बिना दोष वह सजा भोगती

किया ने जिसने पाप ।


अब उसको हर नजर घूरती

ताने देते लोग

व्यथित हुआ जब मन उसका तब

अपनाया फिर जोग

किन्तु जानवर कहाँ नही हैं

तनिक सोचिए आप


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