शर्म नही सत्ता को
शर्म नही सत्ता को
शर्म नही सत्ता को कुछ भी
भले मरें बिन दाना पानी
कृपा दृष्टि बस धनवानों पर
मजदूरों पर आनाकानी ।
देश बँटा जब सैंतालिस में
मरे सिर्फ मजबूर बेचारे
स्थिति आज भयावह उससे
फिरें आज सब मारे मारे
मौत भूख सब पीछे इनके
विवश गरीबी करुण कहानी ।
सरकारी फरमान हुआ है
बारह घन्टे काम करो अब
मरना खपना केवल तुमको
तनिक नही आराम करो अब
संविधान हो रहा कलंकित
संसद करती बस मनमानी ।
पैदल चल कर मील हजारों
पाँवों में लेकर वे छाले
बच्चों के सँग सड़क नापते
खोज रहे हैं चन्द निवाले
यादों में है घर अपना बस
और याद बस छप्पर छानी ।