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Chandragat bharti

Tragedy Others

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Chandragat bharti

Tragedy Others

धनिया गयी भूख से हार

धनिया गयी भूख से हार

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कहाँ कहाँ जाकर खटकाये

बंद सभी हैं द्वार 

घर में बैठी बेबस धनिया

गयी भूख से हार ।


दिल जलता बस आज नहीं है

चूल्हे का संयोग

सपनों में ही आखिर कैसे

कब तक लगता भोग

करे जतन क्या समझ न पाये

इतनी है लाचार।


कामुक नजरें लगी हुई हैं

दरवाजे पर आज

बार बार आँचल से ढकती

बस वह अपनी लाज

अन्दर अन्दर टूट रही वह 

हुई जवानी भार।


महँगाई ने कमर तोड़ दी

पैसा रहा न काम

तरह तरह के लालच देते

गली गली गुलफाम 

फँसी जिन्दगी आज भँवर में

कौन लगाये पार ।


किसे निहारें सूनी आँखें 

निष्ठुर यह संसार

बस दो राहें बची शेष अब

मन में करे विचार

तन अपना नीलाम करे या

खुद को डाले मार ।


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