आदमी
आदमी
लाखों सितम जुबान से करता है आदमी ।
तलवार-ओ-तीर जेह्न में रखता है आदमी ।।
कुदरत की रहमतों से ही फलता है हर दरख्त ;
औ नेकियों के नूर से फलता है आदमी ।
नीयत, नजर से, कौल या फितरत से भी मियाँ ;
क्यूँ वक़्त सा हर पल ही बदलता है आदमी ।
साया वफा का प्यार का ममता यकीन का ;
रिश्तों के कई रंगों में घुलता है आदमी ।
जब चाहता है खेलता है तोड़ता है दिल ,
कैसे यकीन-ए-यार कुचलता है आदमी ।
अदब-ओ-हुनर की रौशनी औ सादगी का फन ;
इनके बदन को ओढ़ के बनता है आदमी ।