बरबै छंद
बरबै छंद
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जीवन बहती धारा, चल उस पार ।
ठिठक ठिठक कर बढ़ना, व्यर्थ विचार ।।
जिसके मन का आँगन, है उजियार ।
उसने खुद पर पाया, है अधिकार ।।
आज मिला है तुझको, खेवनहार ।
अब निश्चित होगा भव, सागर पार ।।
ऐ मन चल चलते हैं, मोह विसार ।
भ्रम जीवन माया मृग, देख विचार ।।
जब तक मन तू सोया, चादर तान ।
स्वप्न भयावह तय थे, कहें सुजान ।
जय श्री रघुपति राजा, राम महान ।
सकल सिद्धि के पूरक, जय गुण खान ।
चंचल चपला चमके, ज्यों विकराल ।
त्यों ही नयन निहारें, करें निहाल ।।