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06 AANVI KUMARI 6C

Fantasy

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06 AANVI KUMARI 6C

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पुनः युधिष्ठिर छला गया है

पुनः युधिष्ठिर छला गया है

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पुनः शकुनि की कपट-चाल से, एक युधिष्ठिर छला गया है।

घर-घर वही हस्तिनापुर सी, कुटिल विसातें बिछी हुई हैं।

चौसर-चौसर छल-छद्मों से, ग्रसित गोटियाँ सजी हुई हैं।


दरबारी हैं विवश सभा में, कौन धर्म का पाँसा फेंके

कौन न्याय अन्याय बताये, सबकी आँखें झुकी हुई हैं।

लगता है चेहरों पर इनके, रंग स्वार्थ का मला गया है।

पुन: शकुनि की.............


जो रहस्य द्वापर में थे वे कलयुग में अति गूढ़ हुए हैं।

जाने क्या है पाण्डु पुत्र सब, यों कर्तव्यविमूढ़ हुए हैं।

समझ रहा है कर्ण निरन्तर, धूर्त कौरवों की सब चालें

किन्तु पाण्डव नियति-चक्र पर आँख मूँद आरूढ़ हुए हैं।


फिर से कोई गांधारी सुत, लाक्षागृह को जला गया है।

पुनः शकुनि की.............

दुःशासन हर तरफ ताक में, सहमी-सहमी द्रुपद सुताएँ।

अंधे राजतन्त्र के सम्मुख, नग्न रो रहीं मर्यादाएँ।

कृष्ण लगाये रुई कान में, आँखों पर बाँधे हैं पट्टी


नहीं देखते-सुनते कुछ भी, विनय, याचना, करुण व्यथाएँ।

मौन खड़े हैं भीष्म द्रोण सब, दाँव अनूठा चला गया है।


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