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06 AANVI KUMARI 6C

Others

4.5  

06 AANVI KUMARI 6C

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दोहा गीतिका

दोहा गीतिका

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बैठी चंचल साधिका, कोमल मन के द्वार ।

आखर आखर दे रही, भावों को आकार ।।


आती जाती नाँव है, यह पावन संसार ।

जिसके ऊपर चल रहा, साँसों का व्यापार ।।


मन से जाता दूर तक, सत्कर्मों का नूर ।

रोंके से रूकती नही, यह प्रकाश की धार ।।


नेह दीप जगमग करे, चमके मन आवास ।

सुचिता रूपी चेतना, हर्षित मुदित अपार ।।


माटी माटी चाक पर, चढ़ा बना कर देह ।

सुन्दर-सुन्दर रच रहा, रूप अनूप कुम्हार ।।


राम कृष्ण को खोजते, बीती सारी उम्र ।

घर घर रावण ले रहे, कलयुग में अवतार ।।


धर्म कर्म की नीति है, लेनदेन इस भाँति ।

मन के सूने गाँव में, चन्दन का व्यापार ।।


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