सफ़र
सफ़र
हसीन सा वो सफर,
मुझे अपना दीवाना बना दिया गया।
कहीं पेड़ तो कहीं नदी
ख़ूबसूरती का असली मतलब समझ में आ गया।
जैसा जैसा वो आगे बढ़ा,
आपने प्यार मुझे और डुबाता चला गया।
नदी की वो लहर,
आपने साथ-साथ मेरे दुख को भी बहाती चली गई।
सोचना तो बहुत होता था,
पर मेरी उस सोच को और
साकारात्मक बनाता चला गया, वो सफर
आख़िर...वो सफ़र, चला ही गया !
ज़रूर आऊँगा मैं, कहकर चला ही गया !
