रंग
रंग
रंग तो बहुत हैं जीवन में
पर.. सब स्याह पड़े हैं
तुम जो रंग दो अंग हमारा
उजली किरण सी दमक उठूँ मैं...!
अब कोई और रंग फबता ही नहीं
ये कौन से रंग में रंग दिया तुमने मुझे।
नफ़रत नहीं है रंगों से मुझे
बस..
अब चाहत नहीं किसी रंग की
तुम क्या गये
सारे रंग फ़ीके लगने लगे हैं
कहाँ खेलती थी कभी रंगो से
तुम ही लेकर आये थे सब
रंगीन दुनिया / मिज़ाज़ और
रंग बिरंगी ख़ुशियाँ भी
मेरे सारे रंग तो बस
श्वेत और स्याह ही थे
तुम क्या आये
रंगों का सैलाब लेकर आये
और जाते जाते
देखते देखते ये सैलाव
ख़ुद में मुझे भी डूबा गया
बस..
अब तो कोई रंग पसन्द नहीं आता
सब मैंने तुमको दे दिया
जहाँ रहो ख़ुश रहो
और तुम्हारा जहां रंगों से सराबोर रहे..
तुम्हें रंगों से बहुत प्यार है
और मैं तुम्हारे प्यार से
नफ़रत कैसे करूँ..?
तुम्हीं बता दो..!

