"अद्भुत प्रेम"
"अद्भुत प्रेम"
झाँक रहा वो चाँद फलक से,
अँधियारे को निहार रहा,
गुफ़्तगू कुछ मुझसे भी करके,
मेरे मन के अँधियारे को भी मिटा रहा!
हरी-भरी सी एक ज़िन्दगी,
केवल जड़ में सिमटी रह गई,
धीर धरो तुम आस रखो बस,
वो चाँदनी कानों में कह गई!
रोशन हैं आसमां, रोशन हैं ये जहाँ,
बंजर सी धरा हैं, और बंजर हैं इंसा,
प्रकृति भी जो बेचैन हो उठी,
उसको ठंडक देने की है उस चाँद की मंशा!
खुद आधा होकर मुस्का रहा है,
मरती धरा में प्राण बसा रहा हैं,
पड़ गए है जो अँधियारे के बादल,
मन से उन्हें छटा रहा हैं,
कुछ इस कदर वो फलक का चाँद,
प्रकृति संग प्रेम रचा रहा है!