जिन्न और यम
जिन्न और यम
समक्ष खड़े जिन्न और यम,
एक अटल सत्य है, तो एक है मात्र भ्रम !
भ्रम पुकारे 'जो हुकुम मेरे आका',
सत्य का न कर सके, कोई बाल भी बाक़ा !
भ्रम खड़ा करने को हर ख़्वाइश साकार,
सत्य की आख़िरी ख़्वाइश भी, खोल सकती मोक्ष का द्वार !
बचपन है जिन्न यदि, अंत भी तो है यम,
अटल सत्य जो खड़ा समक्ष, उस मृत्यु का भी क्या करना गम !
वास्तविकता का कर सामना, क्या सत्य को अपना लूँ,
माँग जिन्न से अपनों का सुखद भविष्य, मोक्ष यम से मांग लूँ !
दिल दिमाग जंग लड़े, जिन्न-यम इंतज़ार में खड़े,
क्या फ़ैसला करूँ ऐसा, जो दोनों में से कोई न बिगड़े !
जिन्न तो 'आका' मान चुका, दे हुकुम उसको सब्र करा लूँ,
यम से माँग जीवनदान, क्या चिराग जला फिर जिन्न आज़मा लूँ !
मुख से वाणी निकल पड़ी, यम बोले हाँ बोलो लड़की,
अंतिम ख़्वाइश रखो अपनी, संग चलने की आ गयी घड़ी !
दिल के आगे हारा दिमाग, सत्य को झुकला न सका,
यम बोले इम्तेहान था तेरा, तुझमे मुझे सत्य ही दिखा !
जिन्न तो भ्रम लगा ही था, धुएँ संग ओझल होगया,
इतनी गहरी नींद थी मेरी, लगा मानों सपना सत्य हुआ !
सीख मिली स्वप्न से ऐसी, हक़ीक़त का दिल में दीप जला,
मृत्यु के भय को छोड़, सत्य-भ्रम का अंतर मिला !
जिन्न एकमात्र कल्पना सी है, यम हक़ीक़त का नाम है !
कितना भी भाग लो इससे, ये अटल पैगाम है !
