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Simpy Aggarwal

Fantasy

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Simpy Aggarwal

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जिन्न और यम

जिन्न और यम

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समक्ष खड़े जिन्न और यम,

एक अटल सत्य है, तो एक है मात्र भ्रम !

भ्रम पुकारे 'जो हुकुम मेरे आका',

सत्य का न कर सके, कोई बाल भी बाक़ा !


भ्रम खड़ा करने को हर ख़्वाइश साकार,

सत्य की आख़िरी ख़्वाइश भी, खोल सकती मोक्ष का द्वार !

बचपन है जिन्न यदि, अंत भी तो है यम,

अटल सत्य जो खड़ा समक्ष, उस मृत्यु का भी क्या करना गम !


वास्तविकता का कर सामना, क्या सत्य को अपना लूँ,

माँग जिन्न से अपनों का सुखद भविष्य, मोक्ष यम से मांग लूँ !

दिल दिमाग जंग लड़े, जिन्न-यम इंतज़ार में खड़े,

क्या फ़ैसला करूँ ऐसा, जो दोनों में से कोई न बिगड़े ! 


जिन्न तो 'आका' मान चुका, दे हुकुम उसको सब्र करा लूँ,

यम से माँग जीवनदान, क्या चिराग जला फिर जिन्न आज़मा लूँ !

मुख से वाणी निकल पड़ी, यम बोले हाँ बोलो लड़की,

अंतिम ख़्वाइश रखो अपनी, संग चलने की आ गयी घड़ी !


दिल के आगे हारा दिमाग, सत्य को झुकला न सका, 

यम बोले इम्तेहान था तेरा, तुझमे मुझे सत्य ही दिखा !

जिन्न तो भ्रम लगा ही था, धुएँ संग ओझल होगया, 

इतनी गहरी नींद थी मेरी, लगा मानों सपना सत्य हुआ !


सीख मिली स्वप्न से ऐसी, हक़ीक़त का दिल में दीप जला,

मृत्यु के भय को छोड़, सत्य-भ्रम का अंतर मिला !

जिन्न एकमात्र कल्पना सी है, यम हक़ीक़त का नाम है !

कितना भी भाग लो इससे, ये अटल पैगाम है !


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