दरवेश- ए- नामा
दरवेश- ए- नामा
क्यों भटके भटके रहते हो ?
क्यों उलझे सिमटे रहते हो ?
क्या बात है फ़राज़ चेहरे पर
हंसी ले के दर्दों को सिलते हो ?
जख्मों को रोज नमक लगाते हो
और खुद को तसल्लियाँ देते हो !
दर्द हो रोना हो या सिसकियां?
क्यों तुम खुद से पूछा करते हो?
तुम कैसे फकीर हो ए इरफान !
लेना नहीं फिर भी मांगा करते हो ?
सब लुटाकर अब आए हो महफिल में,
कमल हो, यह भी सबसे छुपाया करते हो ?
बागों से फूल चुराने वाला कहां गया
अब कैसे फूलो को बचाया करते हो ?
दिल दरवेश सा बन गया है तुम्हारा
जो कहीं तो कहीं फिरते रहते हो !