इश्क़
इश्क़
वो उनका कुछ न कहना
और इशारों में कह जाना
फिर यूं ही मिलना और
मुकम्मल के बिना चले जाना
कुछ तो खोए रहना और
कुछ तो खो ही जाना
एक मुद्दत बात नजर उठाना
और शर्मा कर फिर फेर लेना
मुसकुरा कर यूं तसल्ली देना
फिर कभी नाराज़ हो जाना
हया की चादर में चांद छुपाना
और यूं ही बस हमें तड़पाना
वो पहला प्यार याद है न ?
वो ज़माना याद तो है न ?