हमसफर
हमसफर
मेरी महफिल है उस राह पर,
जहां फकीर कोई और है।।
मुझे बंटना कुछ और है ?
उनकी तलब ही कुछ और है।।
मेरे किस्से है जिस पन्ने पर,
वो पलट रहा कुछ और है।।
मै लिखा हूं यूं, के वो समझ सके !
और वो पलट रहा कुछ और है।।
मेरे राह की जिन्हे खबर नही,
वो मुसाफिर ही कोई और है।।
जिसे समझ रहा वो "पसंद" है
जो मुझे समझ चुका कोई और है।।