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Agrawal Shruti

Classics

4  

Agrawal Shruti

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सतरंगा आसमान

सतरंगा आसमान

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खिले खिले हैं मन, जागी ऐसी उमंग 

सतरंगा हो गया आसमान 

वो तान छेड़ी उस बंसरी ने श्याम की

मदमाती राधा भूली लोकलाज 


मुट्ठी भरी गुलाल या वो हथेली ही लाल

भरमाए कृष्ण औचक निहार रहे

मादक बयार चली होली में इस साल 

भँवरों के झुंड भी गाते मल्हार रहे


भरी पिचकारी भिगो दी फिजा सारी

जाने क्यों देखो सखी पिया बौराए हैं 

टेसू के रंगों से रँग गईं दसों दिशाएँ

खेलने को होरी आज कान्हा जी आए हैं।


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