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अप्रतिम निखार

अप्रतिम निखार

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उसके ललाट पर जलता सूरज

स्निग्ध स्मित मदमस्त बयार

रिमझिम फुहारों सी छेड़ी जो तान

छिड़े वीणा के तार, मन गाए मल्हार 


नटखट चाँदनी में नहाया बदन

फूले जूही और बेला हजारों हजार 

कानों में ये क्या कह दिया पिया

शरमाई चितवन पे अप्रतिम निखार 


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