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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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दुष्यंत, शकुन्तला और भरत

दुष्यंत, शकुन्तला और भरत

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व्यास सी द्वारा रचित महाभारत ग्रंथ में दुष्यंत, शकुन्तला और भरत की कथा पढ़ी, उसे कविता शैली में लिखने की इच्छा हुई ।


दुष्यंत, शकुन्तला और भरत



दुष्यंत एक प्रतापी राजा थे 

एक दिन गये शिकार खेलने 

सेना भी उनके साथ थी 

पहुँचे एक सुंदर उपवन में ।


कण्व ऋषि का आश्रम वहाँपर

भीतर पहुँचे राजा और बोले 

“ क्या कोई उपस्थित यहाँपर”

सुन्दर एक कन्या निकली आश्रम से ।


स्वागत किया राजा का उसने 

पूछे वो “ आपकी क्या सेवा करूँ “

राजा कहें “ कण्व ऋषि का 

दर्शन करने यहाँ आया हूँ “।


शकुन्तला कहे “बाहर गये वो 

घड़ी दो घड़ी प्रतीक्षा कीजिए “

दुष्यंत पूछें” सुंदरी कौन तुम 

कौन पिता, यहाँ आयी किसलिए “ ।


शकुन्तला ने कहा “ मैं कण्व की पुत्री “

राजा बोलें “वो तो अखंड ब्रह्मचारी 

उनकी पुत्री कैसे हो सकती “

शकुन्तला ने सुनाई कहानी सारी ।


“ विश्वामित्र, मेनका की कन्या मैं 

छोड़ चली गई माता मुझको 

ब्रह्मर्षि कण्व पालन पोषण किया 

इसलिए पिता मेरे हैं वो “ ।


दुष्यंत कहें “ तुम ब्राह्मण कन्या नहीं 

राजकन्या हो तुम और इसलिए 

गन्धर्व विवाह मुझसे कर सकती “

शकुंतला की भी सहमति उसमें ।


गंधर्व विधि से विवाह कर लिया 

परंतु कोई भी साक्षी ना इसका 

कुछ देर बाद दुष्यंत चले गये 

ये कहकर कि फिर आऊँगा ।


महर्षि कण्व आश्रम जब लौटे 

दिव्य दृष्टि से सब जान गये 

कहें कि धर्म विरुद्ध नहीं ये 

बलवान पुत्र होगा एक तुमसे ।


पुत्र जब हुआ शकुन्तला को तो 

बहुत बलिष्ठ, देवकुमार सा 

सिंह, बाघ, हाथियों को बांध ले 

जब वो बालक छ वर्ष का ।


बालक के अलोकिक कर्म देखकर कण्व ऋषि ने शकुन्तला से कहा 

“युवराज होने के योग्य ये अब “

और शिष्यों को दी आज्ञा ।


“ शकुंतला को पति के घर पहुँचा दो 

सर्वदमन नाम उस बालक का 

हस्तिनापुर छोड़ आए शिष्य उन्हें 

राजसभा में पहुँची शकुन्तला ।


कहे “ राजन, ये पुत्र आपका 

युवराज बना दीजिए आप इसे 

प्रतिज्ञा जो थी की आपने 

गंधर्व विवाह में, निभाइये आज उसे ।


दुष्यंत कहें “ तू किसकी पत्नी 

मेरा कोई भी संबंध ना तुझसे “

क्रोध में भरकर शकुन्तला बोली 

“ राजन आप ऐसा क्यों कह रहे “।


तभी आकाशवाणी हुई वहाँ 

“ शकुन्तला का अपमान ना करो 

इसकी बात सर्वथा सत्य है

तुम ही इस बालक के पिता हो “ ।


पुरोहित, मंत्रियों ने भी सुना ये 

दुष्यंत भी आनंद से भर गए 

“ मैं जानता मेरा पुत्र ये “

शकुन्तला से तब कहा उन्होंने ।


“केवल तुम्हारे कहने से ही यदि 

स्वीकार मैं पहले कर लेता 

प्रजा संदेह करती इसपर और 

कलंक छूट नहीं पाता इसका ।


इसी उद्देश्य से प्रेरित होकर 

दुर्व्यवहार किया था मैंने 

तुम दोनों को स्वीकार करता मैं 

मेरा ये पुत्र ही युवराज बने “।


भरत नाम से प्रसिद्ध हुआ वो 

चक्रवर्ती स्म्राट वो था पृथ्वी का 

इसी भरत से इस देश का 

भारत देश नाम पड़ा था ।


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