STORYMIRROR

Dr. Tulika Das

Romance Classics

4  

Dr. Tulika Das

Romance Classics

रंग बरसे, मन तरसे

रंग बरसे, मन तरसे

1 min
230

रंग बरसे चारो ओर

मन तरसे मेरा

कहां है मन का चोर ?


चुरा ले गया रंग सारे

अब राह तकते नैन बिचारे।


सतरंगी सपने थे नैनों में

कुछ आधे सोए

कुछ आधे जागे

नींदों के साथ राते करती थी बाते

मुझे कहा जगाती थी रातें ?


नींद गई, चैन गया

और तो और

रंग सपनों के भी ले गया।


बसा गया नैनो में छवि अपनी

गुलाल प्रीत का लगा गया।


हा ! थी होली की ही‌ एक शाम वो

मीत बन मुझे वो रंग गया।


दे कर मुझे अहसास अपना

रंग इंतजार का दे गया ,

दे गया वो रंग दर्द का

बना है रंग जो अब

मेरी हर होली का।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance