रंग बरसे, मन तरसे
रंग बरसे, मन तरसे
रंग बरसे चारो ओर
मन तरसे मेरा
कहां है मन का चोर ?
चुरा ले गया रंग सारे
अब राह तकते नैन बिचारे।
सतरंगी सपने थे नैनों में
कुछ आधे सोए
कुछ आधे जागे
नींदों के साथ राते करती थी बाते
मुझे कहा जगाती थी रातें ?
नींद गई, चैन गया
और तो और
रंग सपनों के भी ले गया।
बसा गया नैनो में छवि अपनी
गुलाल प्रीत का लगा गया।
हा ! थी होली की ही एक शाम वो
मीत बन मुझे वो रंग गया।
दे कर मुझे अहसास अपना
रंग इंतजार का दे गया ,
दे गया वो रंग दर्द का
बना है रंग जो अब
मेरी हर होली का।