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Babu Dhakar

Classics Inspirational

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Babu Dhakar

Classics Inspirational

सेवा में

सेवा में

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सेवा में श्रीमान यह कविता

मन में कल्पना का कबीला

एक पल मन हर्षित होता छबीला 

दूजे पल मूर्छित होता मुखौटा ।


सेवा में समर्पित जो मन 

मेवा प्राप्त करता हर क्षण

देना है दान तो दया का देना 

सेवा का मौका कभी ना छोड़ना ।


सेवा मेरा दोस्त है

नाम है जिसका सेवानाथ

जो सेवा(आरती) भोलेनाथ की

हमेशा सच्चे मन से करता है ‌।


सेवा करने की कामना करना

किसी से सेवा लेने की ना सोचना

सेवा ही मार्ग है सच्चे पथ पर चलने का 

मेवा की कामना कभी भी ना करना ।


सेवा कर्म है 

सेवा धर्म है 

सेवा ही सद्गुणों का उपयोग है 

सेवा ही दुर्गुणों की रोकथाम है ।


सेवा करके सुदामा बने मित्र कान्हा के 

सेवा करके हनुमान हुए रामा के 

चेतक घोड़े ने भी सेवा की राणा प्रताप की

रोचक बनेगा जीवन सेवा में सुधबुध खोकर ।


सेवा नर की नर ही कर सकता है 

सेवा नारी की नारी ही करें तो अच्छा है

पर क्या नर हो या क्या नारी हो 

नर नारायण तो नारी नारायणी तो क्या भेद हो ।


सेवा में श्रीमान यह कविता

मन में कल्पना का कबीला

एक पल मन हर्षित होता छबीला 

दूजे पल मूर्छित होता मुखौटा।


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