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Amitosh Sharma

Romance Fantasy

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Amitosh Sharma

Romance Fantasy

चाय-ज़िन्दगी और ग़मे-दास्ताँ

चाय-ज़िन्दगी और ग़मे-दास्ताँ

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अब न तो उसके आने की कोई आश ही बची है,

न ही फिर से मिलने की उम्मीद में कभी मायूस होता हूँ मैं।

अब तो अंधेरी रात है,

खालीपन का एक खूबशूरत एहसास है, 

और चाय की वो यादें साथ है।।


ऐसा नहीं, कि उसकी कमी नही खलती, 

या उससे बात नही हो सकती,

बस खुद के ही बनाए कुछ दायरें हैं, 

कुछ सीमाएं हैं, 

जिसे लाँघना किसी को मंजूर नहीं।


कुछ गिले शिकवे भी हैं, 

और थोड़ी बहुत नाराज़गी भी।

दोनो की अपनी ही हट्ट है,

जिसपे हम खूब अड़े है,

वो समझौता करे ऎसा न मुझे मंजूर है, 

न उसने कभी करा है।


वो उसकी मासूम ज़िद्द सदा ही मुक़म्मल रही,

और मैं खुद के सिद्धान्तों से समझौता कर लूँ

ये कतई मुमकिन नहीं, 

आख़िर इन रगों में राजपूताना ख़ून उबाल मार रहा है।।


इसलिए ग़मे इस दर्द में,

चाय का सहारा लिए,

उसके ख़्यालों में डुबकर, 

अक्सर खुद से ही बातें करता हुँ मैं, 

और ग़मे–इश्क़ की अधूरी दास्ताँ को

नम आंखों से प्यारी मुस्कान लिए लिखता हूँ मैं।।


अब न तो उसके आने की कोई आश ही बची है,

न ही फिर से मिलने की उम्मीद में कभी मायूस होता हूँ मैं।

अब तो अंधेरी रात है,

खालीपन का एक खूबशूरत एहसास है, 

और चाय की वो यादें साथ है,

जिसे लिए ख़ूब जी रहा हूँ मैं।।


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