मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?
मैं कौन हूं?
बुद्धामिरामहरीशिवोहं।।
मैं बुद्ध, राम, कृष्ण और शिव अर्थात मेरा नाम मेरी पहचान नहीं हो सकती है,
क्योंकि इस जग से मिला नाम मुझे इस जग से ही अलग कर रहा, मुझे द्वैत बना रहा मुझे एक नाम देकर, एक नई पहचान देकर, पर मुझे सच्चाई समझ आ गई है कि ये नाम तो बस मेरे मिट्टी जैसे शरीर को मिला है जो कल उसी मिट्टी में मिलकर राख बन जाएगी ।
इसलिए न मैं शरीर हूं, न मेरा कोई नाम है मैं द्वैत नहीं अद्वैत हूं अर्थात एक पवित्र आत्मा हूं, और पवित्र आत्मा को ही बुद्ध, राम, कृष्ण और शिव कहा गया है जो ब्रह्म है यानी एकमात्र सच, जिसका न जन्म हो सकता न मृत्यु वो कल भी थे आज भी हैं और अमर ही रहेंगे।
इसलिए शरीर को मिला नाम या उससे बने रिश्ते क्षणिक हैं और उसकी सच्चाई भी उतनी ही क्षणिक है, तो उससे मिले क्षणिक पहचान का क्या करूंगा मैं ?
इसलिए द्वैत नहीं अद्वैत हूं मैं, अर्थात कोई शरीर नहीं सिर्फ़,
एक पवित्र आत्मा हूं मैं।
यानि ब्रह्म हूं मैं।
अर्थात राम हूं मैं।।
