रात के सपने
रात के सपने
रात आई सुबह ने ली अंगड़ाई
हमने कहा रात से आप क्यों आई आप आई ?
तो आवाज क्यों नहीं लगाई
लेकिन रात की बेचैनी और
दिन की तन्हाई को
ना रात समझ पाई और
न सुबह ने आवाज लगाई
सुबह ने कहा निकलो
सपनों की दुनिया से
क्योंकि रात तो है।
एक काली परछाई
सिलसिला चलता रहा !
देखते-देखते सपने खत्म हुए
रात फिर आई और सुबह ने फिर ली अंगड़ाई
रात आती है और सुबह सपने
आंखों में सपने दिखा जाती है।
