"चोटी वाला जिन्न"
"चोटी वाला जिन्न"
यूं ही रास्ते पर जाते हुए
पैर पर मेरे लगी ठोकर।
सोचा कोई पत्थर होगा,
उठाकर साइड में फेंकूँ।
जो हाथ में लिया तो
पाया इक धातु का चिराग।
देखकर उसे परखा नज़रों से,
आई याद इक कहावत दिमाग में।
फिर क्या था लगे हम भी
उस चिराग को रगड़ने,
जुट गए चमकाने और
धातु को निखारने में।
रगड़ते ही उठा इक जोरदार
गुबार धुएं का।
प्रकट हुआ एक मोटा ऊंचा
छोटी सी चोटी वाला एक जिन्न।
"जो हुक्म मेरे आका" अदब से
बोला वो कमर झुकाकर।
मैं गिरते-गिरते बची,
लड़खड़ाकर, सकपकाकर।
आँखें मली, गौर से देखा
हवा में लहरा रहा था एक जिन्न।
मैं ख्याली पुलाव लगी पकाने,
क्या मंगाऊँ, क्या छोड़ूं?
असमंजस में पड़ी थी
सोचा कुछ ऐसा करती हूँ
कि आज सबके लिए
खुशनुमा नयी सुबह मंगा लेती हूँ ।
इस जहां से कोविड-१९
महामारी भगा देती हूँ ।
मैंने पूछा मुस्कुरा कर
"करोगे कुछ अनोखा काम।"
वो बोला मधुर आवाज़ में
"मैं तो आया ही इसलिए, मेरे आका"
"ठीक है, तो समूल जड़ से
नाश कर दो कोविड-१९ का।
मिटा दो नामोनिशान
कोरोना वायरस का।
पृथ्वी को आच्छादित कर दो,
पेड़ पौधों हरीतिमा से
कि ऑक्सीजन की कमी से
फिर न जाए कोई जान।"
जिन्न ने कहा," जो हुक्म मेरे आका,
इस वक्त की यही उचित मांग है।"
पलक झपकते ही हवा हुआ
कोविड-१९ दुनिया से।
जिन्न बोला," आका हुआ समय
मेरे विदा लेने का।
चलता हूँ , बस जाते-जाते
कह जाता हूँ ,
पृथ्वी को वृक्षों से
हरा-भरा रखना भरपूर।
स्वच्छता-सफाई का रखना ध्यान,
सोशल डिस्टेंसिंग भी अमल में लाना।
मास्क का प्रोटेक्शन अति आवश्यक,
तभी संक्रमण से उबरे मानव जाति।
कहकर जिन्न तो हवा हुआ,
आसमां में विलीन हुआ।
आँख खुली तो धरती पर
खुद को मैंने पाया।
समझ में आ गया
देखा एक सपना था।
जो भी था अच्छा था
उम्मीद की झलक दिखला गया।
कोशिश करें तो
आत्मबल व नियम पालन कर,
हरा देंगे कोविड को,
जीत जाएंगे हम!
