आँसू
आँसू
जानते सब धर्म आँसू !
वेदना के मर्म आँसू !
चाँद पर हैं ख्वाब सारे
हम खड़े फुटपाथ पर !
खींचते हैं बस लकीरें
रोज अपने हाथ पर !
क्या करे ये ज़िन्दगी भी
आँख के हैं कर्म आँसू !
जानते सब धर्म आँसू !
वेदना के मर्म आँसू !
आज वर्षों बाद उनकी
याद है आई हमें !
फिर वही मंजर दिखाने
चाँदनी लाई हमें !
सोचकर ही यूँ उन्हें अब
बह चले हैं गर्म आँसू !
जानते सब धर्म आँसू !
वेदना के मर्म आँसू !
साथ थे जो लोग अपने
छोड़ वे भी जा रहे !
गीत में हम दर्द भरकर
सिर्फ बैठे गा रहे !
रोज लेते हैं मजे बस
छोड़कर सब शर्म आँसू !
जानते सब धर्म आँसू !
वेदना के मर्म आँसू !
रोज ही इनको बहाते
रोज ही हम पी रहे !
बस इन्हीं के साथ रहकर
जिन्दगी हम जी रहे !
पत्थरों के बीच रहकर
हो गये बेशर्म आँसू !
जानते सब धर्म आँसू !

